ठुट्ठा पीपर / सदानंद मिश्र
ठुट्ठा पीपर हाँफै छै ।
जे धरती के झाँपन ओकरा चील-गीध सब झाँपै छै !
जे न लगैलकै जी में कहियो अन्धड़-झक्खड़-झपसी केॅ
तनियो-टा बयार बहला पर थर-थर आबेॅ कापै छै ।
अत्ता-पत्ता बकरी-छकरी, डाँटी-डाली हाथी के
फोॅर-फूल सब चिड़िया-चुनमुन खाय-खाय केॅ नाँचै छै ।
कटलोॅ-छटलोॅ फेंड़-फेंड़ छै, धड़ छै दू हिस्सा में बँटलोॅ
जड़ के रेशा-रेशा आबेॅ काटै-छाँटै बाँटै छै ।
दिन-दिन भेलोॅ जाय छै बुच्चोॅ, तय्यो सब गाछी सें उच्चोॅ
करम-धरम के बलि राजा केॅ बामन बुड़वाँ नाँपै छै ।
एकरा धोधर में चारो जुग, तीनों काल नुकैलोॅ छै
खोॅड़-पतारें लोॅत-झाड़ गाछी के ग्रह-फल बाँचै छै ।
जादू-टोना जंतर-मंतर-तंतर केॅ-केॅ थकलै लोग
कत्तेॅ टाँगा आरा चललै, ई नै सूखै-ताकै छै ।
जोॅल चढ़ै छै सब गाछी पर, एकरा ऊपर लाल रुधीर
यही कारनें हरियर पंपा ठार-ठार सें झाँकै छै ।