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स्मृतियाँ बीज नहीं होतीं / रश्मि भारद्वाज
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स्मृतियाँ बीज नहीं होती
कि उगाया जा सके उनसे
यादों का एक घना वृक्ष
तपती धूप में
दो घड़ी की छाया के लिए
वह तो मौज़ूद रहती हैं आसपास हर घड़ी हवा-सी,
याद नहीं किए जाने पर भी
कहीं नहीं जाती
देती रहती हैं साँसें
आगे चलते जाने के लिए
वह हैं उस पानी-सी
जो आँखों से बहे तो नमकीन
और होठों पर तैरे
तो मीठी हो जाती हैं
तय करती रहती हैं एक सफ़र चुपचाप
शिराओं से लेकर धमनियों तक का
बिखरी होती हैं यह जिए गए रास्तों पर
समेटते हैं इसके अवशेष हम
जोड़ना चाहते हैं
अधूरी जिग सॉ पजल ज़िन्दगी की
गुम कर आए बेपरवाही में
जिसके कई टुकड़े