भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सात फेरों से आगे / रश्मि भारद्वाज
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:58, 19 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रश्मि भारद्वाज |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सात फेरों में हमारे दो जोड़े पैर
जाने कितने क़दम चले थे
आज फिर कुछ क़दम साथ चलते हैं,
साक्षी इस बार अग्नि नहीं
होंगे धूप, हवा, पेड़ और पहाड़।
हम साथ चलेंगे
कोई संकल्प नहीं
मन्त्र नहीं
बस उतने ही पल
जब तक चल सकें हम बिन थके
और जिस क्षण मेरे अँगूठे को अपनी उँगलियों से उठा तुम
किसी पत्थर पर टिकाओगे,
मुक्त हो जाएगा मेरा शरीर
और तुम्हारी आत्मा,
मैं नहीं रहूँगी
तुम भी नहीं
वह पत्थर शिव हो जाएगा