भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
थोड़ा और ! / रश्मि भारद्वाज
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:00, 19 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रश्मि भारद्वाज |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अपनी शाख से बिछड़ा
सूखे पत्ते-सा मण्डराता एक और दिन
अपनी आवारगी के साथ
ले आता है यह याद भी
कि बहुत-कुछ है
जिसे दरकार है थोड़ी-सी नमी की
थोड़ा और सहेजे जाने की
बहुत कुछ है, जो ज़रूरी है
बचाया जाना
इस जलती–सुलगती फिज़ा में
जैसे कुछ टुकड़े हँसी की हरियाली
कुछ अधखिली भोलेपन की फ़सलें
बहते मीठे पानी-सी कुछ यादें
और बसन्त
हमारे–तुम्हारे मन का