अवसाद मुक्ति है / रश्मि भारद्वाज
निराशा के वो पल जब आप हो जाना चाहते हैं बिलकुल अकेले
एक सख़्त आवरण बुने हुए अपने चारों ओर
बेबस लौट जाती है आपको चीर देने को आतुर नुकीले पंजों वाली हर आवाज़
ऐसे ही किसी समय का होना है, ख़ुद के बेहद क़रीब हो जाना
मुक्त हो जाना आसपास बुने हर झूठ से
बेमतलब चले गए हर रास्ते पर बार–बार लौटना
और सोचना कि सबब क्या था यूँ चलते चले जाने का
ऐसे ही किसी बेहद अन्धेरे समय में यक़ीन होता है
कि है मौज़ूद रोशनी की भी एक साफ़, निष्कलंक दुनिया
और जिसतक पहुँचने के रास्ते पर है उन अन्धेरों का पहरा
जिसे अब तक जीवन के भ्रम में सहेजे रखा था
ऐसे ही किसी बेहद अकेले समय में यक़ीन होता है
कि चाहे कितने ही खतरनाक ऐलानों के साथ बढ़ते रहें दीमकों के झुण्ड
सुरक्षित है आपकी आत्मा
वह नहीं कर सकते घुसपैठ वहाँ तक
कि सुखों के नाम पर बुने हर शोर के लिए बन्द है रास्ता
और ऐसे ही किसी समय में आप देख पाते है कुछ आँसू
छू पाते हैं हर बाहरी परत हटाकर कुछ मन
उनका दुख जोड़ देता है अपने अन्दर का टूटा हुआ कुछ
हर वो चीज़ जो अब तक अपने वजूद में नहीं थी
बहुत मजबूती से आकर पकड़ लेती है आपका हाथ
और ऐसे ही किसी समय में हो जाता है यक़ीन
नहीं है इतनी पुख़्ता कोई भी नफ़रत
कि वह आपसे छीन ले साथ मिल कर रो पाने का सुख