भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
टहनी हरसिंगार के / शिवनन्दन 'सलिल'
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:50, 20 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवनन्दन 'सलिल' |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हम सुगन्ध छी मन्द पवन के धरती के सिंगार छेकौं ।
तीनों रंग तिरंगा के हम, सुन्दर हरसिंगार छेकौं ।
हरा-भरा जड़ से फुनगी तक
पुष्प-वृन्त छै केसरिया ।
झिलमिल झिलमिल, जगमग-जगमग
उजरोॅ उजरोॅ पंखुड़िया
हमरा पर रसधार चननियां, हम आतप निस्तार छेकौं ।
होतैं साँझ सजी दुलहिन रं
तारा संग मुस्कावै छी
हारल-थकल पड़ल दुनियाँ पर
हम मधुरस छलकावै छी
पोरे पोर हिलोर भोर तक सातो सुर झंकार छेकौं ।
हमरोॅ दुनियाँ में सुन्दरता
चार पहर के मर्म छिकै
शेष समय जन के सेवा में
अर्पण हमरोॅ कर्म छिकै
देहोॅ के व्याधि शत्राु लेॅ हम सायक टंकार छेकौं ।
तीनों रंग तिरंगा के हम, सुन्दर हरसिंगार छेकौं ।