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टहनी हरसिंगार के / शिवनन्दन 'सलिल'
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हम सुगन्ध छी मन्द पवन के धरती के सिंगार छेकौं ।
तीनों रंग तिरंगा के हम, सुन्दर हरसिंगार छेकौं ।
हरा-भरा जड़ से फुनगी तक
पुष्प-वृन्त छै केसरिया ।
झिलमिल झिलमिल, जगमग-जगमग
उजरोॅ उजरोॅ पंखुड़िया
हमरा पर रसधार चननियां, हम आतप निस्तार छेकौं ।
होतैं साँझ सजी दुलहिन रं
तारा संग मुस्कावै छी
हारल-थकल पड़ल दुनियाँ पर
हम मधुरस छलकावै छी
पोरे पोर हिलोर भोर तक सातो सुर झंकार छेकौं ।
हमरोॅ दुनियाँ में सुन्दरता
चार पहर के मर्म छिकै
शेष समय जन के सेवा में
अर्पण हमरोॅ कर्म छिकै
देहोॅ के व्याधि शत्रु लेॅ हम सायक टंकार छेकौं ।
तीनों रंग तिरंगा के हम, सुन्दर हरसिंगार छेकौं ।