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दर्पण में खड़ी हो तुम / केदारनाथ अग्रवाल
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दर्पण में खड़ी हो तुम
- वसन्तोत्सव की मुद्रा में
फेंक कर पीछे
- शीश से उतर कर नीचे जाता अंधकार
देख कर मुझे हो रहा है तुमसे प्यार ।