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एक झूठ बनाम हैप्पी एण्डिंग / रश्मि भारद्वाज

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बचपन में हमें ठगने के लिए सुनाई जाने वाली कहानी में
हुआ करते थे एक राजा-रानी भी
दोनों मिले लो ख़त्म हुई कहानी
इन काल्पनिक कहानियों के नकली राजा-रानी
अब अक्सर राह चलते टकराते हैं
रानी के पैरों की फटी है बिवाई
राजा के जूते घिसे हुए हैं
ख़ाली कनस्तरों-सा अक्सर ढनमनाता है उनका प्रेम
दीवारों की झरती परतों से गिरते हैं सपने

हम मिलने को अक्सर मरने से बदलकर खिलखिलाते थे
आज़ अख़बारों के लाल पन्ने देख सहम जाते हैं
नीन्द के मीठे देश में ले जाने वाली वो कहानियाँ
आज नीन्दें ही ले गईं है अपने साथ
तब सो पाते थे बेफ़िक्र हम
जब तक नहीं था पता
कि राजा-रानी के मिलने के बाद कहानी ख़त्म नहीं
बल्कि शुरू ही हुआ करती है
बीच के कई गुम पन्नें बाद में हमें मिलते
नज़रें छुपाते हैं
उनका अन्त लिखता कथाकार
ठीक अन्तिम पंक्ति से पहले ही भूल गया है अपनी कहानी
यह सब हमने बहुत बाद में जाना

हम तो कहानी में जीते-जागते–सोते हैं
जब तक नहीं जानते
कि दरअसल कहानियाँ हमें जी रहीं होती हैं