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गंगा-7 (तब तुम... ) / कुमार प्रशांत
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नदी है
पानी है
पानी में डूबता मेरा पाँव है :
नदी पखारती है, सहलाती है
डुबाती है और फिर छोड़ जाती है
मेरा पाँव
नहीं जानता कि मेरे पाँवों से
नदी को क्या मिल रहा है
लेकिन नदी से मेरे पाँवों को जो मिल रहा है
वह क्या मुझसे छिपा है!
कल नदी नहीं रहेगी
(कितनी नदियाँ तो नामशेष हो चुकी हैं! )
फिर...
फिर... मैं भी नहीं रहूँगा
लेकिन तुम...
तुम तो रहोगी
क्योंकि तुम स्वंय ही तो नदी हो
जिसमें पाँव डाले मैं बैठा हूँ