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चार कविताएँ / सुतपा सेनगुप्ता
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1. मृत्यु
मेरे पास ही मिलेगी अमलतास की ख़ुशबू
मैं, आपका प्यारा कुत्ता
दिन-रात लोटता रहता हूँ आपके पैरों में
बुढ़ापे की इज़ीचेयर पर जाड़े की धूप
और फिर एक दिन मैं मुँह खोलकर निगल जाऊँगी।
2. वासना
झुलसी जा रही हैं सारी इन्द्रियाँ
अमरावती के नौ द्वार झुलस उठे हैं
साँस तक छोड़ना भी मुश्किल
... तुम पास आकर खड़े भर हुए थे!
3. चेतावनी
क़लम ने कहा जाओ, आइने के सामने खड़े होओ
लेकिन, मेकअप मत करना मेरे ज़रिए।
4. त्रिताल
यह कैसी नीयत है तुम्हारी
एक ही तो दिल है ... इश्क सिर्फ़ एक लफ़्ज़
तो फिर कैसे फ़रमा पाए
इतनी बार!
मूल बँगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी