खुरपी और हँसुए से भी तेज़ है बोली
पता नहीं, कब, किस बात पर
चल जाए लाठी-गोली
दरिद्रता में भी हठी बेजोड़
एक कट्ठा खेत में डाली जाती
कितनी राजनीति की खाद
कभी जानना हो
तो पधारिए हम्मर गाँव।
खुरपी और हँसुए से भी तेज़ है बोली
पता नहीं, कब, किस बात पर
चल जाए लाठी-गोली
दरिद्रता में भी हठी बेजोड़
एक कट्ठा खेत में डाली जाती
कितनी राजनीति की खाद
कभी जानना हो
तो पधारिए हम्मर गाँव।