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अपनी-अपनी जगह / स्वरांगी साने
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:10, 4 जुलाई 2016 का अवतरण
1.
वो आया तो गुलनार हो गई मैं
उसने कहा
ऐसे बैठो
यूँ दिखो
अब हँसो
तब समझी कि मैं तो उसके लिए मेहमानखाना भर थी
जिसे सजाया सँवारा जा सकता है मन-मुताबिक
और जहाँ से जब जी चाहे उठकर जाया जा सकता है
2.
मेरे सारे रंग थे
पर वैसे नहीं
जैसे वो चाहता था
उसके हाथ में कूची थी
उसके रंग थे
तब जाना था
वो है एक बन्द स्टूडियो
और उसके लिए
मैं एक ख़ाली कैनवास
3.
मेरे लिए कनफ़ेशन-रूम की तरह था वो
कह उठा -- कहो
और मैं कहती गई
फिर बोल पड़ा --
अब बन्द करो
तो समझी
उसके लिए मैं एक सिस्टम थी
जैसे होता है म्यूज़िक सिस्टम
कि चाहा तब ऑन-ऑफ़ कर दिया
4.
प्यार में ऊँचा उठा जाता है
कितना
और कैसे पता नहीं
पर मैं थी उसके लिए महज लिफ़्ट
जिसका दरवाज़ा कभी भी धाड़ से बन्द किया जा सकता है