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ख़ुद से मुँह छुपाके / ज्ञान प्रकाश विवेक

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पत्थर उठाके झील में वो फेंकता रहा

पानी को छटपटाता हुआ देखता रहा


मत जो कड़ी है धूप, ज़रा छाँव मे ठहर

रस्ते का एक पेड़ मुझे रोकता रहा


बारिश में भीगता हुआ बालक गरीब का

लोगों की छतरियों को खड़ा देखता रहा


मैं उससे आगे बढ़ गया जिसकी न थी उम्मीद

मेरा नसीब पीछे मेरे हाँफता रहा


रोटी है एक लफ़्ज या रोटी है इक खुशी

ये प्रश्न अपनी भूख से मैं पूछता रहा


जब ये खबर हुई मुझे मैं आइना भी हूँ

तो खुद से मुँह छुपाके कहीं भागता रहा