भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टूटे हुए पर की बात / ज्ञान प्रकाश विवेक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:01, 4 मार्च 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक }} कभी दीवार कभी दर की बात करता था व...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कभी दीवार कभी दर की बात करता था

वो अपने उज़ड़े हुए घर की बात करता था


मैं ज़िक्र जब कभी करता था आसमानों का

वो अपने टूटे हुए पर की बात करता था


न थी लकीर कोई उसके हाथ पर यारो

वो फिर भी अपने मुकद्दर की बात करता था


जो एक हिरनी को जंगल में कर गया घायल

हर इक शजर उसी नश्तर की बात करता था


बस एक अश्क था मेरी उदास आंखों में

जो मुझसे सात समंदर की बात करता था