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जाने कितनी बार पढ़ डाली तमन्ना की किताब / ओम प्रकाश नदीम
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जाने कितनी बार पढ़ डाली तमन्ना की किताब
कुछ समझ में ही नहीं आती तमन्ना की किताब
आस्मानी सब किताबें देखती ही रह गईं
आदमी को ले उड़ी उसकी तमन्ना की किताब
गुम न हो जाएँ तुम्हारे बेख़बर होश-ओ-हवास
तुम न पढ़ लेना कभी मेरी तमन्ना की किताब
हल न कर पाते पहेली अपने मुस्तक़बिल की हम
पास में होती न जो अपनी तमन्ना की किताब
ख़्वाहिशों की बेरुख़ी ने जाने क्या जादू किया
अब मुझे पढ़ती है बेचारी तमन्ना की किताब
कोई चूहा भी नहीं इसको कुतरता है ’नदीम’
ख़ुद से भी फाड़ी नहीं जाती तमन्ना की किताब