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सरकारी पाठशाला / शहनाज़ इमरानी

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गाँव में सरकारी पाठशाला खुलने से
गाँव वाले बहुत ख़ुश थे
पाठशाला में बच्चों का नाम दर्ज कराने का
कोई पैसा नहीं लगेगा
किताबें, यूनिफ़ॉर्म, दोपहर का भोजन
सब कुछ मुफ़्त मिलेगा

तीन कमरों की पाठशाला
दो कमरे और एक शौचालय
प्रधान अध्यापिका, अध्यापक और चपरासिन
सरपंच जी ने चौखट पर नारियल फोड़ा
दो अदद लोगों ने मिल कर
राष्ट्रीय गीत को तोड़ा-मरोड़ा

सोमवार से शुरू हुई पाठशाला
पहले हुई सरस्वती वन्दना
भूल गए राष्ट्रीय गान से शुरू करना

अध्यापक जब कक्षा में आए
रजिस्टर में नाम लिखने से पहले
बदबू से बौखलाए
बच्चों से कहा -- ज़रा दूर जा कर बैठो
मैं जिसको जो काम दे रहा हूँ
उसे ध्यान से है करना
नहीं तो उस दिन भोजन नहीं है करना
रजिस्टर में नाम लिखा और काम बताया

रेखा, सीमा, नज़्मा तुम बड़ी हो
तुम्हे भोजन बनाने में
मदद करना है चम्पा (चपरासिन) की
झाड़ू देना है और बर्तन साफ़ करना है
अहमद, बिरजू गाँव से दूध लाना
कमली, गंगू
पीछे शौचालय है
मल उठाना और दूर खेत में डाल कर आना
तुम बच्चों इधर देखो छोटे हो पर
कल से पूरे कपड़े पहन कर आना

सब पढ़ो छोटे ’अ’ से अनार बड़े ’आ’ से आम
भोजन बना और पहले सरपंच जी के घर गया
फिर शिक्षकों का पेट बढ़ाया
जो बचा बच्चों के काम आया

दिन गुज़रने लगे
रेखा, नज्मा का ब्याह हो गया
अब दूसरी लड़कियाँ झाड़ू लगाती है
अहमद, बिरजू को अब भी
अनार और आम की जुस्तजू है
कमली, गंगू मल ले कर जाते है
खेत से लौट कर भोजन खाते
कभी भूखे ही घर लौट जाते
छोटे बच्चे अब भी नंगे हैं
छुपकर अक्सर बर्तन चाट लेते हैं
कोई देखे तो भाग लेते हैं
चम्पा प्रधान अध्यापिका के यहाँ बेगार करती है
कुछ इस तरह से गाँव की पाठशाला चलती है।