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हादसे के बाद / शहनाज़ इमरानी
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कितने लोग मेरी तरह
सुबह उठ कर इस डर में
अख़बार देखते होंगे
कहीं कोई बम न फटा हो
किसी जगह हमला
तो नहीं कर दिया
कहीं आंतकवादियों ने
हर हादसे के बाद लगता है
मुझे घूरती हैं मुझे कुछ नज़रें
बातें कुछ सर्द हो जाती हैं।