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बहुत दिन बाद / शहनाज़ इमरानी

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मैं मान लेती हूँ कि मेरे पास
कहने के लिए नया कुछ नहीं
जो भी है कहा जा चुका है
अगर में न बोलूँ तब भी
मेंरी ख़ामोशी का दूसरा मतलब निकाल लोगे
मेंरी सोच पर इल्ज़ाम लगा दोगे

अगर सोचे हुए रास्ते से चल कर
सोचे हुए मुक़ाम पर पहुँच जाऊँ
तो हो सकता है सोचा हुआ वो न हो मेरे सामने
मुश्किल है पहचान का अनपहचाना होना
मगर पहचान का अर्थ यह तो नहीं है
की उसे दृश्य मान लूँ
जो तुम्हे दिखाई देता है

पूरा सच बहुत सख़्त होता है
पर सबसे बड़ा सच मौक़ापरस्त है
वक़्त नहीं है मेंरा, मेंरे लिए देर है
फ़ीके मौसम और सख़्त वक़्त की
चाल बहुत धीमी होती है।