भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदिवासी लड़की / शहनाज़ इमरानी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:06, 10 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहनाज़ इमरानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
लोहे के पँजे से वो रेत भर रही है तगाड़ी में
हाथों की चूड़ी
याद दिला रही है भगोरिया की
भूख उसे झाबुआ के जंगल और
उसकी बस्ती से बहुत दूर ले आई
सुबह से शाम तक रेत, सीमेण्ट ढोती है
कुछ देर रुके तो ठेकेदार दिहाड़ी काटने का कहता है
छुप कर हथेली पर तम्बाकू मलती है
और फिर काम करने लगती है
उसके सपनों में
रोज़ आता है
भगोरिया का मेला