इक्कीस का क़ानून / सुकुमार राय
भोलेनाथ इस देश के राजा,
भाजी टका, टके सेर खाजा।
कोई यहाँ फिसलकर गिरा,
समझो गया फटाफट धरा।
क़ाज़ी के याँ केस चलेगा,
इक्कीस रुपया फ़ाइन लगेगा।
शाम सात के पहले भइये,
छींकोगे तो परमिट चहिए।
छींक दिया जो परमिट बिना,
बजे पीठ पर ता धिन धिना।
कोतवाल ख़ुद दे नसवार,
छींक दिलाए इक्कीस बार।
दाँत हिले तो लगती भारी
चार टके की मालगुज़ारी।
मूँछ अगर लम्बी करनी है,
सौ आने की फ़ी भरनी है -
मुश्कें कस और गरदनियाय,
इक्कीस बार सलाम कराएँ।
चलती राह किसी की नज़र
फिरी अगर कुछ इधर-उधर,
ख़बर गई राजा को यानी
मिनटों में पलटन आ जानी।
धूप में खड़ा करके लाला,
पानी प्यायें इक्कीस प्याला।
कविता लिखने वालों को धर,
रखवाते पिंजरे के अन्दर।
और सटाकर मुँह से कान,
पढ़ें पहाड़ा सौ शैतान।
बनिये का खाता पकड़ाते,
इक्कीस पेज हिसाब कराते।
और वहाँ का ऐसा न्याय,
रात आधी जो नाक बजाए,
गोबर, बेल की गोंद मिलाकर,
उसके सिर में ख़ूब लगाकर,
इक्कीस बार दिलाकर चक्कर,
इक्कीस घण्टे रखें टाँगकर।
शिव किशोर तिवारी द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित