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अब नहीं उगते कैक्टस में हाथ / जुगल परिहार

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राजस्थानी कविता मूलः जुगल परिहार

अब नहीं उगते कैक्टस में हाथ

बचपन में मना करती थी

कहा करती थी माँ -

'मत मार बहन को

पाप लगेगा रे, पाप

देख, वह देख

वो काँटों वाला कैक्टस

उगा करत हैं उस में

पापी हाथ'

बच्चे डरते थे तब

लेकिन अब?

अब तो डरता नहीं कोई भी


हाँ,

उगते थे कभी, लेकिन

अब नहीं उगते कैक्टस में हाथ


अनुवादः नीरज दइया