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हास्य-गीत / अमरेन्द्र
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भुदरा-गुनिया बड़ी चिकनिया
बसिया भात न खाय
टटका भात में मूड़ी डुलावै, सतुआ गट-गट खाय
पढ़ै-लिखै में पूछोॅ तेॅ दोनों
सरपट सीता-राम ।
भोरे होतैं लगे सुडक्का खेत-पतारी ओर
सांझकी बक्ती छुपलोॅ-छुपलोॅ लौटथौं जेना चोर
कुछ पूछोॅ तेॅ गुम्मी साधथौं।
दोनों सरपट सीता-राम ।
की कहियौं ढीबा रोॅ दादी ई दोनों के बात
बात चलै छै जत्तेॅ दुन्हू के, ओत्तै दुन्हू के हाथ
पीटी आवै छै केकरो भी कभियो
सरपट सीता-राम ।
केकरो गाछ केॅ झाड़ी आवौं, केकरो लोॅत-पतार
गारियै दै छै टोला भरी के पांडे, कैथ, कुम्हार
जों डाँटोॅ तेॅ हाँसथौं किट-किट
की रं सरपट सीता-राम ।
गाँव भरी के मौगी-मुंसा की नै कहै छै बात
रोज सुनै छी वै नें मारलकै, वै दोनों केॅ लात
कुल केॅ आग लगाय केॅ रहतै आबेॅ
सरपट सीता-राम ।