Last modified on 19 जुलाई 2016, at 22:36

घुरियो नै ऐलै कंत/ अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:36, 19 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध प्रसाद विमल |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

घुरियो नै ऐलै कंत सखी हे
घुरियो नै ऐलै कंत
कैन्होॅ कैन्होॅ लागै फागुन
देहोॅ में जैना लागै आगिन
केना होतै तोहीं बतावोॅ
ई विरहा के अंत सखी हे

बरसी बरसी गेलै रंग अबीरा
वाट जोहत मन भेलै अधीरा
बोली बोली बुलावै हमरा
पपीहा, पिक, वसंत सखी हे
घुरियो नै ऐलै कंत

उड़तें देखौं गगन जब धूरा
लागै, मन होतै आबेॅ पूरा
नागिन फन फूफकारै क्षण क्षण
थकलौं ताकीं पंथ सखी हे
 घुरियो नै ऐलै कंत

घुरियो नै ऐलै कंत सखी हे
घुरियो नै ऐलै कंत

मन-बगिया गूंजै जब भौंरा
थिरकी-थिरकी नाँचै मन मोरा
आशा में राखी मन जीयै छी
करबै केना हंत सखी हे

घुरियो नै ऐलै कंत
घुरियो नै ऐलै कंत सखी हे
घुरियो नै ऐलै कंत ।