भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भाय जी/ अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:03, 19 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध प्रसाद विमल |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
इक कहानी आय तोरा, हम्में सुनैभौं भाय जी
भटकी रास्ता सें गेलोॅ छौं देश तोरोॅ भाय जी
लोर आँखी सें बहि केॅ गंगा-यमुना धार भेलै
कानी-कानी केॅ पुकारौं आय भरत के भाय जी
पीर-शोषित देश के-सुनैवाला छै कोय नै
देह देश के नोची-नोची सब्भैं गेलै खाय जी
विश्वास जनता रोॅ जीती केॅ पंच बनलै जे सिनी
भाषणो ॅ पर देश रो ॅ खेती करै वैं भाय जी
लूट आरो आतंक सें भयवीत जन-जन छै यहाँ
लाज देशोॅ के केना बचतै कहोॅ तोंय भाय जी
कठिन कीचड़ भ्रष्टता के संसद जहाँ बदनाम छै
धूल तक में शूल भरलोॅ पाँव बचावोॅ भाय जी
ई विमल विश्वास हमरोॅ जगना जरुरी छौं तोरहौ
शपथ माँटी के तोरा, सुती नै जइयोॅ भाय जी ।