पढ़ै जे छेलियै हो रामा/ अनिरुद्ध प्रसाद विमल
पढ़ै जे छेलियै हो रामा, एक्के इसकुलिया हो,
तही क्षण जोड़लां प्रीत न जी।
सोचलेॅ छेलियै हम्मू हो रामा, बिहा जे हम्में करबै हो,
सुखोॅ सें रहबै दूनों प्राणी जी ।
यही बीचें ऐलै हो रामा, जालिम दुसमनमा हो,
देलकै हमरा हिरनी से विलगाइये न जी ।
बापोॅ हमरोॅ मरलै हो भैया, मैयो मोरी मरली हो,
भैया-भौजी करी देलकै हमरा फरक न जी ।
लड़की वाला समझै हो भैया, हमरोॅ हलतवा हो,
कथी लेॅ अइतै हमरोॅ दुआर न जी ।
कम्पीटीशन में बैठलोॅ हो भैया, करलां कमपीट हो,
‘भइवा’ में मांगै घूस हजार न जी ।
छटी गेलां हम्में हो भैया, पैसा करनामा हो,
कथी लेॅ जैबोै फरु वहोॅ डगर न जी ।
दिल्ली हम्में गेलियै हो भैया, पटना हम्में गेलियै हो,
टाटा, बोकारो के हम्में रिटायर न जी ।
खेती जे हमरा छेलै हो भैया, दस-पाँचे कठवा हो,
साहू के करजा में बिकलै वहोॅ खेत न जी ।
केकरा लेॅ हम्में जीवै हो रामा, कथी लेॅ हम्में बचवै हो,
सौसें दुनिया लागै बेकार न जी ।
सुआरथ में डुबलोॅ हो रामा, दुनिया केरोॅ लोग हो,
बारुद के ढेरोॅ पर संसार न जी ।
जाति-धरम के झगड़ा हो भैया, मिटवा नाहिं मिटै हो,
सभ्भेॅ धरमोॅ के एक्के सार न जी ।
देशें-देशें लड़ै हो भैया, राजें-राजें लड़ै हो,
मनुसोॅ के मारै लेॅ बनै हथियार न जी।
देशोॅ के हलतवा हो देखी, मनें-मन कानौं हो
केना होतै विमल दुख उपचार न जी ।