भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सरकार हो कैसी भी / अनातोली परपरा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:51, 16 मार्च 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=अनातोली पारपरा |संग्रह=माँ की मीठी आवाज़ / अनातोली प...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: अनातोली पारपरा  » संग्रह: माँ की मीठी आवाज़
»  सरकार हो कैसी भी

सरकार हो कैसी भी

कैसा भी राजा

महान कवि का होता है जीना हराम


गाता है जब वह गीत आज़ादी के

चुकाता है मूल्य उसका

अपनी आज़ादी से


हरेक तानाशाह के साम्राज्य में

कवि ही देता है शब्द

प्रताड़ित जनता के कष्टों को


होता है जब कभी राज आज़ादी का

करता है तांडव शैतान

ख़ुदा की छाती पर

करता है वह क़त्ल

आज़ादी को उसी आज़ादी से


नहीं सुनाई देती इसी वज़ह

महान कवियों की आवाज़

आज़ादी के दौर में


(रचनाकाल : 1995)