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चिन्ताएँ वाजिब ही होती हैं / संजय चतुर्वेद

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लेकिन जब हमने तय कर ही लिया
कि गीताप्रेस से हमें नहीं सीखना
लोकप्रकाशन, लघुपत्रिका
सांस्कृतिक विकल्प, साक्षरता का कोई सबक़
और हनुमान प्रसाद पोद्दार के पास
हमें देने को धरा ही क्या
तो फिर हमें नहीं बचा सकती
लोर्का, शिम्बोर्स्का की लज्जास्पद नक़ल ।

2005