भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कभी चोटिल होगा मन / भावना मिश्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:39, 27 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भावना मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कभी चोटिल होगा मन
कभी छिल जाएगा तन
कभी हम होंगे निराश
कि एक अदद ज़िन्दगी
का क्या कर डाला,
काँटों के आगोश में
सुकून की तलाश
जैसे बेमतलब के काम में
बसर होनी है
बची हुई शै..
जो ज़िन्दगी है,
करते भी क्या..?
कि जीवन के सारे सम्मोहन
खिले हैं कँटीली झाड़ियों पर