भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समुद्र-मंथन / परशुराम ठाकुर ब्रह्मवादी

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:31, 28 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परशुराम ठाकुर ब्रह्मवादी |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुद्र-मंथन करलकै के ?
अमृत मिललै केकरा ?
जे सामर्थवान छेलै
जे लक्ष्मीवान छेलै
ओकरैह लक्ष्मी मिललै
बांकी केॅ मिललै परेशानी
दुख-दरदोॅ के कहानी
मेहनतनामा में बेचारा केॅ मिललै
समुद्रोॅ के फटकार
जीव-जन्तुवोॅ के आह !
ओह ! छी ! छी ! हाय ! हाय !
आरो आँखि में लोर !
जों आँसू केॅ पहचानै वाला
आशुतोष भगवान शिव तखनी नै ऐतियै तेॅ
कत्तेॅ जीव-जन्तु
विषोॅ सें जली जैतियै ।
समुद्र-मंथन/युग-युग में भेलोॅ छै
होते रहतै/विष निकलतेॅ रहतै
लेकिन अफसोस येॅहेॅ छै कि
आय विष पीयै वाला
त्यागी, उदार, उपकारी
कोय नै आगू आवी रहलोॅ छै
यै लेॅ केॅ सारा संसार विषमय भै गेलोॅ छै
विश्व-मानवता आसरा लगैलोॅ छै
एक शिव के ओर !