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मेघ / रघुनन्दन झा 'राही'
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डल्लमडल मेघ छै !
कबदै छै दुखिया के जान,
अत्त करै छोॅ हो भगवान,
कखनी गिरतै घोॅर अधदिया,
दोसरोॅ नै कोय थेग छै !
डल्लमडल मेघ छै !
लहरै छै धानोॅ के खेत
बढ़लोॅ छै पानी के रेत,
आबेॅ डूबा होतै गलतै,
चिन्तां सरगद लोग छै !
डल्लमडल मेघ छै !
दुखिया के तोंही छोॅ आस,
पत राखोॅ या करोॅ निराश,
तोर्है पर सब दार-मदार
जिनगी तोरे नेग छै !
डल्लमडल मेघ छै !