भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जल्दी तारोॅ /रवीन्द्र चन्द्र घोष

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:43, 29 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्र चन्द्र घोष |अनुवादक= }} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आवोॅ जल्दी तारोॅ हमरा
मँझधारोॅ में हम्में फँसी गेलाँ
जंगल, काँटा, कूसोॅ एतना
झाड़ी में हम्में फँसी गेलाँ।
दौड़ोॅ, नै तेॅ डूबी जैतै
नाविक आबेॅ घबरावै छै
पुरवैया केरोॅ झोंका एतना
पतवारो नै आवी थामै छै ।
 
घुमावै छियै हथकण्डो तेॅ
कहाँ तैयो सुनै छै
पालोॅ केॅ उड़ैलेॅ जाय छै
धारा भी तेॅ बेगै में छै ।

पापोॅ आरो पुण्य केरोॅ
लेखा-जोखा करै छियै
पापोॅ केरोॅ पलड़ा बहुते
भारी यहाँ लागै छै
गलती जे हमरा सें होलोॅ
आइन्दा एन्हो नै होतै
जल्दी तारोॅ आवेॅ हमरा
नैया हमरोॅ डूबी जैतै ।