भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बूढ़ा-बूढ़ी /रवीन्द्र चन्द्र घोष

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:44, 29 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्र चन्द्र घोष |अनुवादक= }} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आभीं तोहरोॅ उमर की होलौं
तुतली-तुतली बोली होलौं
बच्चा जेना बोलै छै बोली
ओन्हैं तों बोलेॅ लागलेॅ ।
 
पोता-पोती हँसेॅ लागलौं
तोहरा देखी किलकेॅ लागलौं
व्हील चेयर दौड़ावै छौ
मोॅन खूब लागेॅ लागलौं ।

हम्में बेरासी तोहेॅ तेहत्तर
तोहरा सभैं बूढ़ी कहै छौं
हमरा जवान कहै छै सब्भैं
दाँतो तोहरा नंिहयें रहलौं
बूढ़ा-बूढ़ी हस्सोॅ बोलोॅ
जीवन के गुत्थी खोलोॅ।