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वसन्ती बयार / नरेन्द्र प्रसाद 'लूचो'
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ऐलै वसन्ती लैकेॅ बयार,
सबके मन में बदललै विचार ।
गम-गम गमकै बाग-बगीचा,
चम-चम चमकै गोरी के लिलार ।
डाली डोलै नाँच देखावै,
दुपहरी में बहै बयार ।
पत्ता सब मिली राग अलापै,
हन-हन-हन-हन करै पुकार ।
ई मौसम शादी-वियाह के,
बड़ बढ़िया रिवाज बनल ।
ई मौसम छै प्रेम-मिलन के,
कू-कू कोयल करै पुकार ।