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दिलों में फिर वो पहली सी, मोहब्बत हो अगर पैदा / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'

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दिलों में फिर वो पहली सी, मोहब्बत हो अगर पैदा
यक़ीनन हो नहीं सकता, जहाँ में कोई शर पैदा

फज़ाओं में जो तल्ख़ी है जला कर ख़ाक कर डालो
बुझाओ फिर उसे ऐसे, न हो कोई शरर पैदा

कहो वो बात जो कानो से, सीने में उतर जाए
असर दिल पर जो कर जाए, करो ऐसी नज़र पैदा

सिवाए ख़ार के हासिल न होगा कुछ बबूलों से
शजर ऐसे लगाओ जिनपे हों मीठे समर पैदा

इलाजे रंजो-ग़म वो ही, करेगा अब मुसीबत में
दिया है दर्दे दिल जिसने, किया दर्दे जिगर पैदा

तेरे भटके हुए बन्दों को, जो रस्ता दिखा जायें
कुछ ऐसे लोग दुनिया में, ख़ुदाया फिर से कर पैदा

कोई, तन्हाई में उससे कहे, 'मैं मौत हूँ तेरी'
'रक़ीब' उस शख्स के दिल में, सरासर होगा डर पैदा