खतरा अस्तित्व का / रमा द्विवेदी
> किसी को हद से
> ज्यादा मत चाहो,
> पूरा अस्तित्व ही
> खतरे में पड. जाता हॆ ।
> खोकर अपनी पहचान ,
>आदमी न जी पाता है ,
> न मर पाता है ।
>पूरा अस्तित्व ही
>खतरे में पड. जाता है॥
>किसी से प्रेम इतना न करो
>कि वो विवशता क रूप ले ले,
>क्योंकि विवशता को ढोने में ,
>जीवन व्यर्थ चला जाता है ।
>पूरा अस्तित्व ही
खतरे में पड. जाता है॥
>प्रेम जीवन के लिये है अनिवार्य,
>किन्तु वह जीवन का लक्ष्य नहीं,
>प्रेम में तपने-मिटने के सिवा ,
>कुछ हाथ नही आता है?
>पूरा अस्तित्व ही
>खतरे में पड. जाता है॥
>जिन्दगी सिर्फ़ प्रेम से चल सकती नहीं,
>जिन्दगी एक हीबिन्दु पर रुक सकती नहीं,
>किन्तु प्रेम की अनुभूति से -
>जीवन संभल -संवर जाता है।
>पूरा अस्तित्व ही
>खतरे में पड. जाता है॥
>१९८७ में रचित