भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खतरा अस्तित्व का / रमा द्विवेदी

Kavita Kosh से
Ramadwivedi (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 22:32, 27 मार्च 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमा द्विवेदी}} > किसी को हद से<br> > ज्यादा मत चाहो,<br> > पूरा ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

> किसी को हद से
> ज्यादा मत चाहो,
> पूरा अस्तित्व ही
> खतरे में पड. जाता हॆ ।

> खोकर अपनी पहचान ,
>आदमी न जी पाता है ,
> न मर पाता है ।
>पूरा अस्तित्व ही
>खतरे में पड. जाता है॥

>किसी से प्रेम इतना न करो
>कि वो विवशता क रूप ले ले,
>क्योंकि विवशता को ढोने में ,
>जीवन व्यर्थ चला जाता है ।
>पूरा अस्तित्व ही
खतरे में पड. जाता है॥

>प्रेम जीवन के लिये है अनिवार्य,
>किन्तु वह जीवन का लक्ष्य नहीं,
>प्रेम में तपने-मिटने के सिवा ,
>कुछ हाथ नही आता है?
>पूरा अस्तित्व ही
>खतरे में पड. जाता है॥

>जिन्दगी सिर्फ़ प्रेम से चल सकती नहीं,
>जिन्दगी एक हीबिन्दु पर रुक सकती नहीं,
>किन्तु प्रेम की अनुभूति से -
>जीवन संभल -संवर जाता है।
>पूरा अस्तित्व ही
>खतरे में पड. जाता है॥

>१९८७ में रचित