भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं तो चरण कमल पर वारी! / पन्ना दाई
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:00, 28 मार्च 2008 का अवतरण (New page: मैं तो चरण-कमल पर वारि! बलिहारी जाऊँ अपने पिया के, तन मन धन से वारि। कोई ज...)
मैं तो चरण-कमल पर वारि!
बलिहारी जाऊँ अपने पिया के, तन मन धन से वारि।
कोई जाए गंगा जमुना, मैं या चरनन आऊँ।
साँझ-सवेरे चरण-धूलि का माथे तिलक लगाऊँ।।
शोभा जिसकी न्यारी। मैं तो चरण-कमल पर वारि!...
दोनों नैन बसे या चरनन, या चरनन बहु प्यारे।
जो नारी पति चरनन पूजे, वो बैकुण्ठ सिधारे।।
लाज रखे गिरधारी। मैं तो चरण-कमल पर वारि!...