भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम छोड़ चले हैं महफ़िल को / इंदीवर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:12, 28 मार्च 2008 का अवतरण (New page: मैं पंछी आज़ाद मेरा कहीं दूर ठिकाना रे। इस दुनिया के बाग़ में मेरा आना-ज...)
मैं पंछी आज़ाद मेरा कहीं दूर ठिकाना रे।
इस दुनिया के बाग़ में मेरा आना-जाना रे।।
- जीवन के प्रभात में आऊँ, साँझ भये तो मैं उड़ जाऊँ।
- बंधन में जो मुझ को बांधे, वो दीवाना रे।। मैं पंछी...
- दिल में किसी की याद जब आए, आँखों में मस्ती लहराए।
- जनम-जनम का मेरा किसी से प्यार पुराना रे।। मैं पंछी...