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जीवन में ज्वार / रमेश रंजक

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धन के मन कॉप गये डर से।

जन के जीवन में ज्वार उठे
हक़ लेने को हक़दार उठे

कंजूस डरे कारीगर से।

तीखी-सी एक मशाल जले
शोषण के व्रण से, प्रण निकले

अक्षर टकराए पत्थर से।

(राग मालकोंस पर आधारित गीत)