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आदमी / नवीन निकुंज

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सब अपने-अपने मेॅ
डुबलोॅ छै अंधा रं
केकरौ के याद करै।

की शहरो की गामे
स्वारथ के हाही मेॅ
ईमान भूली गेलै।

मन कानै छै भीतर
तन उ$पर सेॅ चमकै
ई भेद बड़ा गहरा ।

जग मेॅ के रहलोॅ छै
जग केकरोॅ लेॅ रहलै
मन कैन्हें ओझरावै ?