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उल्टे-सीधे घर / आरती मिश्रा

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1.

मेरी उँगलियों ने भी थामी थीं
दो सलाइयाँ
उल्टे-सीधे घर बनाने का
लक्ष्य दिया गया था
कितनी चतुरता से माँएँ
सौंप देती हैं बेटी को घर
उसे आकार देने
सजाने-सँवारने का काम
उँगलियों में घट्टे पड़ जाने से अधिक
घर छूट जाने का डर लगा रहता है
आजीवन दो उँगलियों की चाल पर
टिका रहता है घर

2.

स्वेटर बुनती बेटियों को देखकर
बेहद ख़ुश होती हैं माँएँ
एक-एक घर सँभालती
अल्हड़ बेटी की तन्मयता
माँओं को आश्वस्त करती है
बेटी के हाथ का बुना पहला गुलूबन्द
अनछुई ऊष्मा से सराबोर कर देता है
एक-एक फन्दे को परखती
ताकीद देती कहती है —
और अच्छा बुनो, हमेशा माँ नहीं होगी साथ

घुड़सवार महिला की कहानी
मैं एक रास्ता बनकर फैल जाना चाहती हूँ चुपचाप
इस ऊबड़-खाबड़ कँक्रीट के बियाबान में
उसी तरह, जैसे फैल जाती थीं हमारी नींद में
दादी की कहानियाँ
मैं उन्हीं कहानियों की रंगीन पृष्ठों वाली किताब बनकर
उनके पन्नों की तरह फडफ़ड़ाना चाहती हूँ
इस तरह कि गुज़रे जहाँ से सदी दर सदी
चहलक़दमी करे घर त्यौहार छोटी-छोटी ख़ुशियां ग़म
और कमोबेश बासठ बहत्तर या बयासी की उमर में
जब नई पौध दिन में सोए और
रात-रात भर काम कर रही हो
मैं धीरे से दाख़िल होकर
उनके प्यालों में कॉफ़ी की तरह
सुनाऊँगी ‘हूँकी’ के बिना ही
घुड़सवार महिला की कहानी या कोई और
बिलकुल दादी की लय में।