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समोधन बाबा का तमूरा / आरती मिश्रा
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1.
अरसे बाद
बना पाए मुट्ठीभर धागे
जिसमें और रंग न चढ़े कोई
माना कि रंग उचट भी न पाएँगे
थोड़ा तनकर खड़े हो गए वे
अपने लिबास पर इतराए
2.
पता ही न चला कब बारिश आई
कोई तूफ़ानी झोंका-सा
घुल गए रंग
धुल गए रंग
फिर भी रंगा बार-बार
3.
फटी ओढऩी तो क्या, लगाई थेगड़ी
सिला टाँका
चीख़-चीख़कर लगाई गाँठ
4.
गोधूलि बेला में बैठी देहरी पर
दिया-बाती बिसराए
कि बजने लगा तमूरा समोधन बाबा का
तारों की कम्पन में थरथराता स्वर रहीम का
वे गुनगुनाते मेरी बग़ल से निकल गए
मैं बिखरे धागे बीनकर
जोड़ने की जुगत में
एक बार फिर से लग गई