भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ईसुरी की फाग-23 / बुन्देली

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:01, 15 अगस्त 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=ईसुरी }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देली }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: ईसुरी

ऐसी हती रजउ की सानी
दूजी नईं दिखानी।
बादशाह कै बेगम नइयाँ
ना राजा घर रानी।
तीनऊ लोक भुअन चौदा में
ऐसी नईं दिखानीं।
ईसुर पिरकट भईं हैं जग में
श्री वृषभान भुबानी।

भावार्थ
महाकवि 'ईसुरी' का अपनी प्रेयसी 'रजऊ' से मिलन नहीं हो पाया। इस वियोग में 'रजऊ' के रूप की प्रशंसा करते हुए वे कहते हैं — मेरी 'रजऊ' की ऐसी शान थी कि उसके जैसी दूसरी नहीं दिखाई दी। बादशाह की बेगम और राजा की रानी भी वैसी नहीं हो सकती। तीनों लोक और चौदह भुवनों में भी ऐसी कोई नहीं दिखती।
ऐसा लगता है मानो रजऊ के रूप में वृषभान कुमारी यानि राधा जी ही प्रकट हो गई हैं।