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ईसुरी की फाग-25 / बुन्देली
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♦ रचनाकार: ईसुरी
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जाके होत विधाता डेरे
को कर सकत सहेरे।
पाव रती के जोड़ लगाए
परे हाथ के फेरे।
अदिन-दिना जब आन परत हैं
दालुद्दर नै घेरे।
मारे-मारे फिरत 'ईसुरी'
संजा और सबेरे।
भावार्थ
महाकवि 'ईसुरी' अपनी प्रेयसी 'रजऊ' से कहते हैं — जिसके स्वयं विधाता ही प्रतिकूल है उसकी सहायता भला कौन कर सकता है। जैसे-तैसे पाव-रत्ती जोड़ कर कुछ हैसियत बनाता हूँ लेकिन फिर वही दिन आ जाते हैं। बुरे दिनों में दरिद्रता ही घेर लेती है। ईसुरी कहते हैं — ऐसे में सुबह शाम मारा-मारा भटकता फिरता हूँ।