मेरा हरापन / दिनेश जुगरान
इस युद्ध में किसी हथियार का इस्तेमाल नहीं होता 
न होता है आमना -सामना 
न दुश्मनी ,न कोई मैदान 
ये होता है खाली और बंद कमरों में 
(फुसफुसाहट और इशारों के बीच वालें समय में )
पहले एक दुसरो को नापते है इसमें 
और फिर खोदते है एक - दुसरे के नाप के गड्ढे 
(इसमें आदमी मरते नहीं दबा दिए जाते है )
मेरी पीठ में पैर और कंधो पर हाथ रखकर 
तुमने बहुत दिनों तक अपने षड़यंत्र में शामिल रखा है मुझे 
तुम्हारी आँखों के बीच के सुराख़ से लगातार निकलती 
गर्म हवाओं ने 
मेरी जिस्म के लोहे को बहुत पिघलाया है 
लोहा और आग साथ साथ पलते है 
ये शायद तुम भूल गए 
तुम्हारे उजले हाथों से मेरी आत्माहत्या नहीं होगी 
पेड़ों पर हर साल नए पत्ते उगते है 
मौसम की साजिश का जंगलों और समुन्द्र से कोइ सम्बन्ध नहीं
तुम विधिवत कुछ भी कर लो 
मेरी जमीन पर उगी हुई घास तुम्हारी नहीं हो सकती 
तुम कतरा - कतरा मिला लो ज़हर पानी में 
तुम्हारा मुर्दा साहस मेरा अमृत नहीं पी सकता 
हमेशा नहीं रहते जंगल सूने 
मारा हरापन अपना है 
भीतर मेरी पलता हुआ
	
	