भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़िम्मेदार क़दम / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:53, 9 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=धरती का आयतन / रम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अनजाने में हुई भूल से
हवा, धूल से, आग फूल से
हर जनहितधर्मी उसूल से
नित-नित नई खुराक लिए चल
पानी दार जबाव दिए चल।
चल तेरा रास्ता बड़ा है
सम्मुख है भूगोल कर्म का
अगल-बगल इतिहास खड़ा है
जिम्मेदार कदम धर आगे
हर मुश्किल आसान किए चल।
चल ! चलने से बल मिलता है
मिलती जहाँ शक्ति को धरती
मुरझाया बंजर खिलता है
गंध स्वयं आकार गढ़ेगी
द्वेष-क्लेश का जहर पिए चल।