अधिक दिन नहीं हुए थे तुमसे मिले
कि मेरे भीतर फैली तरल मिट्टी
कोई आकार-सा अख़्तियार करने लगी
मेरे उजाड़ हुए दिनों से
आ टकराईं
खनखनाती लाल ईंटें
तिनके चिन्दियाँ रेशे किसी घोसले से उडक़र कुछ
मेरे तो मानो पर ही उग आए
और मैं उड़ी भी... दूऽऽऽर-दूर