भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लिखा है... मुझको भी लिखना पड़ा है / अख़्तर नाज़्मी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:48, 10 अप्रैल 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अख़्तर नाज़्मी |संग्रह=सवा नेज़े पे सूरज / अख़्तर नाज़...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लिख है..... मुझको भी लिखना पड़ा है जहाँ से हाशिया छोड़ा गया है

अगर मानूस है तुम से परिंदा तो फिर उड़ने को पर क्यूँ तौलता है

कहीं कुछ है….. कहीं कुछ है….. कहीं कुछ मेरा सामन सब बिखरा हुआ है


मैं जा बैठूँ किसी बरगद के नीचे सुकूँ का बस यही एक रास्ता है

क़यामत देखीये मेरी नज़र से सवा नेज़े पे सूरज आ गया है

शजर जाने कहाँ जाकर लगेगा जिसे दरिया बहा कर ले गया है

अभी तो घर नहीं छोड़ा है मैंने ये किसका नाम तख्ती पर लिखा है

बहुत रोका है "नज्मी" पत्थरों ने मगर पानी को रास्ता मिल गया है