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भूख छै हिन्दी के / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

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भूख छै हिन्दी के आरो, अंगिका के त्रास छै
एकदम दिल के दुमहला, पर इ दोनोॅ खास छै।

है सदन के ‘षिष्ट सब भाषा’ केॅ छै सादर नमन
जै धरा पर द्रोण-विष्वामित्र, तुलसीदास छै।

‘गैर भाषा बैर’ कहना, नय पचै सुकरात केेॅ
बात मेॅ सुरमा-भुपाली काम सर्बोग्रास छै।

कर्ण केॅ जौनें छललकै, हाय रे मरदानगी
झूठ केॅ घरबास आरो, सत्य केॅ बनवास छै।

राधिका यमुना जे गेली, पीठ पीछू सेॅ किषन
डाल पर गंगा नहाबै, फेरू लीला रास छै।